Bugyal
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“क्या तुम फिर मिलोगे पुराने बाग़ में
क्या फिर से प्रेम कथा कहोगे उसी सिनेमा हाल में
हम देखेंगे यूँ जैसे नज़रूँ में कैद कर ले
क्या फिर से तुम आँचल से हवा करोगे, गर्मियों की शाम में”
“पहली बार जब हम मिले थे
तुम सहमे और हम डरे थे
शब्द न तुम्हारे होठों से झरे थे
और हम सिर्फ तुम में खोये थे ”
“मिले जो तुमसे हम बार बार
न जाने कैसे कैसे हुए चमत्कार
लगने लगा इस ह्रदय को जैसे
तुम ही तो हो वो जिसका था हमें इंतज़ार”
“फिर न जाने तुम कहाँ खो गए
जीवन की रफ़्तार में बस यादें बनकर रह गए
पल पल ढूंढा हमने तुम्हे
पर न जाने तुम कहाँ चले गए”
“मगर आज फिर मिले तुम उसी बाज़ार में
जहाँ हम मिले थे पहली बार
तुम खड़े थे उसी चूड़ी की दूकान में
उन्ही चूड़ियों की चमक थी तुम्हारी मुस्कान में
क्या तुम फिर मिलोगे , पुराने बाग़ में”
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